Jyeshtha Gauri Puja
Jyeshtha Gauri Pujaज्येष्ठ गौरी पूजा क्या है: भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता अद्वितीय है। हर क्षेत्र की अपनी विशेष परंपराएँ और उत्सव होते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण पर्व है ज्येष्ठ गौरी पूजा, जो खासकर महाराष्ट्र में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। यह पूजा मुख्यतः गणेश उत्सव के दौरान होती है और इसे गौरी आगमन या महालक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है। महाराष्ट्र की गृहस्थ महिलाएँ इसे केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं मानतीं, बल्कि यह परिवार, समृद्धि और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
ज्येष्ठ गौरी पूजा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व गणेशोत्सव के दौरान ज्येष्ठ गौरी पूजा का महत्व
गणेशोत्सव के समय ज्येष्ठ गौरी पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि माता गौरी, जो माता पार्वती का एक रूप मानी जाती हैं, इस समय अपने पुत्र गणेश से मिलने के लिए पृथ्वी पर आती हैं। लोकविश्वास के अनुसार, वे घर-घर जाकर बहुओं और बेटियों को आशीर्वाद देती हैं और परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करती हैं। गणेशोत्सव की शुरुआत गणपति स्थापना से होती है, और चौथे या पाँचवे दिन गौरी पूजन का आयोजन किया जाता है। विवाहित महिलाएँ इस अवसर को बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं, क्योंकि गौरी माता का आगमन उनके लिए सौभाग्य और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
पर्व का समय और महत्व गौरी आगमन का समय
गणेशोत्सव में गौरी आगमन आमतौर पर गणेश चतुर्थी के चौथे या पांचवे दिन होता है, और यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है:
पहला दिन: गौरी आगमन - इस दिन घर में गौरी माता की मूर्ति या कलश लाकर उनका स्वागत किया जाता है।
दूसरा दिन: गौरी पूजा - इस दिन गौरी माता की विधिवत पूजा, श्रृंगार और भोग अर्पित किया जाता है।
तीसरा दिन: गौरी विसर्जन - गणेश विसर्जन के समान गौरी माता को विदा कर विसर्जित किया जाता है।
यह पर्व महाराष्ट्र सहित कई अन्य राज्यों में श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है, जहाँ गौरी पूजा को माता पार्वती के स्वरूप के रूप में सम्मानित किया जाता है।
गौरी आगमन की परंपरा गौरी पूजा की मूर्तियाँ
गौरी पूजा में स्थापित की जाने वाली मूर्तियाँ आमतौर पर मिट्टी से बनाई जाती हैं, क्योंकि इसे पवित्रता और सादगी का प्रतीक माना जाता है। कई परिवार पीतल, चाँदी या लकड़ी की मूर्तियों का भी उपयोग करते हैं, जबकि कुछ स्थानों पर माता गौरी की पूजा कलश स्थापना द्वारा की जाती है। गौरी माता को घर में लाने की परंपरा को बेटी के मायके आने जैसा माना जाता है, इसलिए महिलाएँ उन्हें बहन या बेटी की तरह सजाती हैं। यह विश्वास है कि माता गौरी का आगमन घर में सौभाग्य, सुख और समृद्धि लाता है।
गौरी माता का श्रृंगार श्रृंगार का महत्व
गौरी पूजा में श्रृंगार और सजावट का विशेष महत्व होता है। महिलाएँ गौरी माता को अपनी बेटी या दुल्हन के रूप में सजाती हैं। मिट्टी या धातु की मूर्तियों को रंग-बिरंगी साड़ियों से सजाया जाता है और उन्हें सोने-चाँदी के आभूषण पहनाए जाते हैं। घर को भी सुंदरता से सजाया जाता है, दरवाज़ों पर तोरण और फूलों की माला लगाई जाती है, रंग-बिरंगी रंगोली बनाई जाती है और दीप जलाए जाते हैं। महिलाएँ इस अवसर पर हाथों में मेहंदी रचाकर पारंपरिक मंगलगीत गाती हैं, जिससे घर का वातावरण आनंद और भक्ति से भर जाता है।
पूजा विधि पूजा की प्रक्रिया
गौरी पूजा में पूजा स्थल की सजावट और पारंपरिक विधियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। प्रथा के अनुसार चौकी पर लाल या हरे कपड़े का आसन बिछाकर उस पर गौरी माता की स्थापना की जाती है। नारियल, पान, सुपारी, पुष्प, हल्दी और कुमकुम अर्पित किए जाते हैं। पूजा के दौरान महिलाएँ विशेष 'गौरी गीत' गाती हैं, जिससे वातावरण भक्तिभाव और उल्लास से भर जाता है।
ओटी भरने की परंपरा ओटी भरने की रस्म
गौरी पूजा की प्रमुख रस्मों में 'ओटी भरना' विशेष स्थान रखती है। इस परंपरा के अंतर्गत महिलाएँ एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम लगाती हैं और छोटे-छोटे उपहार भेंट करती हैं। यह रस्म न केवल आपसी प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकजुटता को भी सुदृढ़ करती है। ओटी भरते समय महिलाएँ एक-दूसरे को सुख-समृद्धि और मंगलमय वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देती हैं।
पारंपरिक पकवान और प्रसाद पारंपरिक व्यंजन
गौरी पूजा के अवसर पर महाराष्ट्र में पारंपरिक पकवानों की विशेष भूमिका होती है। इस दिन घर-घर में पूरणपोली बनाई जाती है, जिसे इस पर्व का मुख्य व्यंजन माना जाता है। इसके साथ ही गणपति बप्पा के प्रिय मोदक भी विशेष रूप से तैयार कर प्रसाद के रूप में अर्पित किए जाते हैं। पूजा संपन्न होने के बाद इन व्यंजनों को परिवारजनों और पड़ोसियों के साथ बांटा जाता है।
आधुनिक युग में गौरी पूजा समकालीन परंपरा
आधुनिक समय में भी महाराष्ट्र में गौरी पूजा की परंपरा उतनी ही आस्था और उत्साह के साथ निभाई जाती है। शहरी जीवनशैली अपनाने वाले परिवार भी इस पूजा को पूरे मनोभाव से मनाते हैं। पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए अब कई लोग मिट्टी की पारंपरिक मूर्तियों के स्थान पर इको-फ्रेंडली मूर्तियों का प्रयोग करने लगे हैं। महिलाएँ ऑनलाइन हल्दी-कुमकुम समारोह आयोजित करती हैं और अपनी सजाई हुई गौरी माता की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करती हैं।
पौराणिक दृष्टिकोण और लोकविश्वास गौरी पूजा का फल
लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गौरी पूजा का अत्यंत शुभ फल माना गया है। विश्वास किया जाता है कि जो स्त्री पूरे मन और श्रद्धा से गौरी माता की पूजा करती है, उसे अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। संतान की कामना रखने वाले दंपत्ति विशेष रूप से इस पूजा में भाग लेकर माता से संतान सुख का आशीर्वाद मांगते हैं।
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